आलोचना >> हिन्दी आलोचना दृष्टि और प्रवृत्तियाँ हिन्दी आलोचना दृष्टि और प्रवृत्तियाँमनोज पाण्डेय
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिंदी आलोचना : दृष्टि और प्रवृतियाँ’ के अंतर्गत समूची हिंदी आलोचना की परख-पड़ताल आलोचकों की रचना-दृष्टि के साक्ष्य पर करने का प्रयास किया गया है। दरअसल, आलोचकों के कृतित्व को केंद्र में रखते हुए रचना-आलोचना के गतिमान तत्वों की पहचान ही लेखक का ध्येय रहा है। इसलिए आलोचना के इतिहास को रेखांकित करने के बजाय यहाँ आलोचकों की गवाही पर उसको प्रभावित करने वाले कारको को उद्घाटित करने का प्रयास हुआ है। हिंदी आलोचना के शलाका-पुरुष आचार्य शुक्ल से लेकर रचनाकार-आलोचक रमेशचंद्र शाह तक की आलोचना-दृष्टि की विवेचना करते हुए उन पक्षों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जो आलोचना के विकास को चिन्हित करते हैं। साथ ही, आलोचना की उन प्रवृतियों पर भी यहाँ विचार किया गया है, जिनका सन्दर्भ भारतीय हो या पाश्चात्य, जिन्होंने हिंदी आलोचना को गहरे तक प्रभावित किया है। शास्त्रीय परम्परावादी, तुलनात्मक, समाजशास्त्रीय पद्धति से लेकर उत्तर आधुनिक विमर्शो तक पर विचार करना पुस्तक का उद्देश्य है।
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